गुलाबीनगरी में पहली बार गुजरात के धनतेज गाँव में जन्मे और फिलहाल वडोदरा से आए मशहूर शायर खलील धनतेजवी ने बुधवार को अपने अशआर और गजलों की प्रस्तुति से कविता और गजल प्रेमियों का दिल जीत लिया। साहित्यिक संस्था रस कलश व जवाहर कला केंद्र के संयुक्त तत्वावधान में रंगायन सभागार में रजनीगंधा काव्यसंध्या में धनतेजवी ने समाज, उसकी तस्वीर एवं घटनाओं को शायरी में पिरोकर देर तक लोगों को बांधे रखा। उन्होंने श्रोताओं को अपने पुरअसर अशआर सुनाते हुए कहा कि `मैंने जब भी कागज पर शायरी उतारी है, यूं लगा आंधियों की आरती उतारी है...´ इसके बाद उन्होंने दूसरे अंदाज में एक शेर कुछ इस तरह से कहा कि `तू मेरा दोस्त है दो चार कदम आगे चल, तू अगर पीछे चलेगा तो मैं डर जाऊंगा...´ सुनाया तो सभागार वाह-वाह की गूंज से गुजायमान हो उठा।
Thursday 25 December, 2008
रजनीगंधा की महक शब्दों का जादू
गुलाबीनगरी में पहली बार गुजरात के धनतेज गाँव में जन्मे और फिलहाल वडोदरा से आए मशहूर शायर खलील धनतेजवी ने बुधवार को अपने अशआर और गजलों की प्रस्तुति से कविता और गजल प्रेमियों का दिल जीत लिया। साहित्यिक संस्था रस कलश व जवाहर कला केंद्र के संयुक्त तत्वावधान में रंगायन सभागार में रजनीगंधा काव्यसंध्या में धनतेजवी ने समाज, उसकी तस्वीर एवं घटनाओं को शायरी में पिरोकर देर तक लोगों को बांधे रखा। उन्होंने श्रोताओं को अपने पुरअसर अशआर सुनाते हुए कहा कि `मैंने जब भी कागज पर शायरी उतारी है, यूं लगा आंधियों की आरती उतारी है...´ इसके बाद उन्होंने दूसरे अंदाज में एक शेर कुछ इस तरह से कहा कि `तू मेरा दोस्त है दो चार कदम आगे चल, तू अगर पीछे चलेगा तो मैं डर जाऊंगा...´ सुनाया तो सभागार वाह-वाह की गूंज से गुजायमान हो उठा।
Tuesday 16 December, 2008
डॉ. पल्लव को राष्ट्रीय पुरस्कार
कृते सम्भावना, चित्तौड़गढ़फोन : 9413641775
आदिवासी विद्रोह और साहित्य´ विषयक संगोष्ठी
उदयपुर। श्रम, समूह और सहकारिता पर आधारित आदिवासी जीवन का विघटन व्यक्तिगत संपत्ति के उदय से जुड़ा और तभी आदिवासी और गैर आदिवासी समाज में विभाजन भी हुआ। सुप्रसिद्ध मराठी साहित्यकार और अखिल भारतीय आदिवासी साहित्यकार समिति के राष्ट्रीय महासचिव वाहरू सोनवणे ने उक्त विचार `आदिवासी विद्रोह और साहित्य´ विषयक संगोष्ठी में व्यक्त किए। मानगढ़ में आयोजित इस संगोष्ठी में हरिराम मीणा के उपन्यास `धूणी तपे तीर´ पर चर्चा की गई। सोनवणे ने कहा कि मानगढ़ का नरसंहार भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन का गौरव चिन्ह है लेकिन इसका इतिहास में न होना इस बात का परिचायक है कि इतिहासकार भी पूर्वाग्रह से मुक्त नहीं होते।साहित्य संस्कृति की विशिष्ट पत्रिका `बनास´ द्वारा आयोजित इस संगोष्ठी में राजस्थान विश्वविद्यालय, जयपुर के प्रो। रवि श्रीवास्तव ने `धूणी तपे तीर´ को हिन्दी प्रदेश की संघर्षशील जनता की कर्मठता का दस्तावेज बताया। उन्होंने कहा कि आंचलिकता के विपरित नॉन रोमैंटिक मिजाज पूरे उपन्यास में आदिवासी समाज की प्रवंचनाओं के प्रति एक आलोचनात्मक दृष्टि भी रखता है। प्रो. श्रीवास्तव ने इसे औपनिवेशिक व्यवस्था के परिणामस्वरूप अपनी जड़ों से विस्थापित होते आदिवासी जनजीवन के बदलावों और प्रतिरोध की संस्कृति की महागाथा बताया। सुखाड़िया विश्वविद्यालय, उदयपुर के डॉ. आशुतोष मोहन ने कहा कि पहला गिरमिटिया और जंगल के दावेदार के बीच यह उपन्यास एक नयी श्रेणी की उद्भावना करता है जो इतिहास और साहित्य के बारीक संतुलन को साधने वाली है। गुजरात से आये प्रो. कानजी भाई पटेल ने कहा कि लिखित समाज आदिवासी जीवन और संस्कृति पर मौन रहा है इसी कारण वाचिक परंपराओं में ही इस जीवन के वास्तविक चित्र मिलते हैं। उन्होंने `धूणी तपे तीर´ को इस परंपरा में एक नई शुरुआत बताते हुए कहा कि इतिहास को चुनौती देने के कारण यह उपन्यास सचमुच में महागाथा का रूप ग्रहण कर पाया है। आकाशवाणी उदयपुर के कार्यक्रम अधिकारी लक्ष्मण व्यास ने चर्चा में भाग लेते हुए कहा कि टंट्या भील, चोट्टी मुण्डा जैसे आदिवासी नायकों के साथ गोविन्द गुरु का भी महत्वपूर्ण योगदान है लेकिन हिन्दी समाज इस नायक से अपरिचित ही था। उपन्यास के लेखक हरिराम मीणा ने अपनी रचना प्रक्रिया बताते हुए कहा कि मनुष्य के हक की लड़ाई के इतिहास को मनुष्य विरोधी शोषक-शासकों ने दबाया है और उनके आश्रय में पलने वाले इतिहासकारों ने उनका साथ दिया है।अध्यक्षीय उद्बोधन में वरिष्ठ समालोचक प्रो. नवलकिशोर ने कहा कि मुख्यधारा के इतिहास और अनलिखे इतिहास में भेद है। वर्चस्वशाली प्रभुवर्ग ने हाशिए के लोगों की पीड़ा को वह स्थान नहीं दिया जिसके वे हकदार थे। उन्होंने `धूणी तपे तीर´ को इस संदर्भ में उल्लेखनीय कृति बताते हुए कहा कि यथार्थ चित्रण के साथ यह उपन्यास समानान्तर इतिहास लेखन भी करता है। इससे पहले जागरूक युवा संगठन, खेरवाड़ा के सदस्यों द्वारा गोविन्द गुरु के क्रान्ति गीत `नी मानु रे भुरेटिया´ की प्रस्तुति से संगोष्ठी का शुभारम्भ हुआ। आयोजन में अजुZन सिंह पारगी की पुस्तक `स्वामी गोविन्द गुरु : जीवन अने कार्य´ का विमोचन भी किया गया। संचालन कर रहे `बनास´ के सम्पादक डॉ. पल्लव ने अतिथियों का परिचय दिया। आयोजन में मानगढ़ विकास समिति के नाथुरामजी, लखारा आदिवासी सृजन के सम्पादक जितेन्द्र वसावा, जागरूक युवा संगठन के संयोजक डी.एस. पालीवाल, पत्रकार श्याम अश्याम ने भी चर्चा में भागीदारी की। माल्यार्पण और स्मृति चिन्ह `बनास´ के सहयोगी गणेश लाल मीणा ने भेंट की।
- गणेश लाल मीणा152, टैगोर नगर, से। 4, हिरण मगरी, उदयपुर।-313002
Wednesday 18 June, 2008
जयपुर में सूरज प्रकाश
हिन्दी के प्रख्यात कथाकार सूरज प्रकाश पिछले दिनों जयपुर आए ,श्रमजीवी पत्रकार संघ और प्रगतिशील लेखक संघ के संयुक्त तत्वावधान में विशेष आयोजन में उनका कहानी पाठ हुआ ,जिसमें शहर के अनेक प्रबुद्ध लेखक पत्रकार थे ,दूरदर्शन के निदेशक नन्द भारद्वाज ने कार्यक्रम की अध्यक्षता की
संवाद करते आलोचक राजाराम भादू
Thursday 22 May, 2008
आलोक श्रीवास्तव जयपुर में सम्मानित
आलोक श्रीवास्तव को सम्मानित करते
यशवंत व्यास,शिव कुमार शर्मा और आयोजक
बोलते आलोक
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२० मई की शाम को जयपुर के एम आई रोड स्थित चेंबर भवन में मूलत:विदिशा के रहने वाले और इनदिनों दिल्ली के बाशिंदे नामचीन युवा शायर आलोक श्रीवास्तव को डॉ भगवत शरण चतुर्वेदी फाउन्देशन की और से डॉ भगवत शरण चतुर्वेदी सम्मान से सम्मानित किया गया ,कार्य क्रम में प्रख्यात पत्रकार लेखक यशवंत व्यास ,शायर एवं न्यायाधीश शिव कुमार शर्मा ने आलोक को सम्मानित किया .
सम्मान के बाद वक्तव्य और ग़ज़ल पाठ में आलोक ने अपनी मशहूर ग़ज़लों - 'अम्मा' और 'बाबूजी' के साथ कुछ दोहे सुनाकर श्रोताओं को भावविभोर कर दिया . कार्यक्रम में लोकेश कुमार सिंह साहिल ,डॉ हरिराम आचार्य सहित शहर के अनेक प्रबुद्ध लेखक, शायर और पत्रकार थे
Saturday 17 May, 2008
शिव कुमार बटालवी की एक तवील पंजाबी नज्म
एक कुड़ी जिहदा नाम मोहब्बत
इक कुड़ी जिहदा नाम मोहब्बत
गुम है गुम है गुम है
साद मुरादी सोहणी फब्बत
गुम है गुम है गुम है
सूरत उसदी परियां वरगी
सीरत दी ओह मरियम लगदी
हसदी है तां फुल्ल झड़दे ने
तुरदी है तां ग़ज़ल है लगदी
लम्म सलम्मी सरूं क़द दी
उम्र अजे है मर के अग्ग दी
पर नैणां दी गल्ल समझदी
गुमियां जन्म जन्म हन ओए
पर लगदै ज्यों कल दी गल्ल है
इयों लगदै ज्यों अज्ज दी गल्ल है
इयों लगदै ज्यों हुण दी गल्ल है
हुणे ता मेरे कोल खड़ी सी
हुणे ता मेरे कोल नहीं है
इह की छल है इह केही भटकण
सोच मेरी हैरान बड़ी है
नज़र मेरी हर ओंदे जांदे
चेहरे दा रंग फोल रही है
ओस कुड़ी नूं टोल रही है
सांझ ढले बाज़ारां दे जद
मोड़ां ते ख़ुशबू उगदी है
वेहल थकावट बेचैनी जद
चौराहियां ते आ जुड़दी है
रौले लिप्पी तनहाई विच
ओस कुड़ी दी थुड़ खांदी है
ओस कुड़ी दी थुड़ दिसदी है
हर छिन मैंनू इयें लगदा है
हर दिन मैंनू इयों लगदा है
ओस कुड़ी नूं मेरी सौंह है
ओस कुड़ी नूं आपणी सौंह है
ओस कुड़ी नूं सब दी सौंह है
ओस कुड़ी नूं रब्ब दी सौंह है
जे किते पढ़दी सुणदी होवे
जिउंदी जां उह मर रही होवे
इक वारी आ के मिल जावे
वफ़ा मेरी नूं दाग़ न लावे
नई तां मैथों जिया न जांदा
गीत कोई लिखिया न जांदा
इक कुड़ी जिहदा नाम मोहब्बत
गुम है गुम है गुम है
साद मुरादी सोहणी फब्बत
गुम है गुम है गुम है।
Tuesday 13 May, 2008
भारती अभिधा की तीन कवितायें
स्वप्न
बाँध पोटली
लिफाफे में बादल
एक चंचल बादल का टुकडा
क्या वो मिला तुम्हे?