Thursday 27 December, 2007

आलोक श्रीवास्तव - सच्चा शायर




डॉ. दुष्यंत की एक समीक्षा कलम के लिए

आलोक जितने प्यारे और सच्चे शायर हैं उतने ही प्यारे इंसान भी हैं. सच कहूं तो उनसे मिलने के बाद मेरे लिए यह तय कर पाना मुश्किल हो गया कि आलोक शायर ज़्यादा अच्छे हैं या इंसान. बहरहाल मैं इस जद्दोजहद से खुद को आजाद करता हूँ. क्योंकि 'आमीन' मंज़रे-आम पर है जिसमें सिमटा कलाम आलोक की उम्र से आगे की बात करता है. अपनी उम्र के दूसरे ग़ज़लकारों में सर्वाधिक लोकप्रिय इस शायर की रचनाएं साहित्य की प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में अर्से से शाया हो रही हैं. यहां, मुलाहिजा फरमाएं आलोक की सबसे ज़्यादा पढ़ी और गुनगुनाई जाने वाली अम्मा ग़ज़ल के चंद शेर-

चिंतन, दर्शन, जीवन, सर्जन, रूह, नज़र, पर छाई अम्मा,
सारे घर का शोर शराबा सूनापन तन्हाई अम्मा।


बाबूजी गुज़रे, आपस में सब चीज़ें तक़्सीम हुई, तब-
मैं घर में सबसे छोटा था, मेरे हिस्से आई- अम्मा।


घर में झीने रिश्ते मैंने लाखों बार उधड़ते देखे,
चुपके चुपके कर देती है, जाने कब तुरपाई अम्मा.


आलोक नज्में, गीत और दोहे भी इतनी ही महारत से कहते हैं, मुझे हैरानी यह होती है कि आलोक कितनी ख़ूबसूरती और सादगी से ज़िंदगी का फ़लसफ़ा बयां करते हैं. वो रिश्तों को केज़ुअली नहीं लेते बल्कि उसके हर पहलू को ताक़त बनाते हैं जिससे ज़िंदगी रोशन होती नज़र आती है, बजाहिर आलोक उम्मीद के शायर हैं, उनके क़लम में ज़िंदगी की धड़कन है और वो भी सौ फ़ीसदी पोज़िटिव-
मैं ये बर्फ़ का घर पिघलने न दूंगा,
वो बेशक करें धूप लाने की बातें.


अगर आप हिंदुस्तान के नौजवान लहजे की अच्छी शायरी पढ़ने का शौक़ रखते हैं तो आमीन ज़रूर पढ़ें. शायरी नहीं पढ़ते तब तो आमीन और भी पढ़ें, मेरा दावा है कि आप शायरी को अपनी ज़िंदगी में शामिल किये बिना नहीं रह पाएंगे, 'आमीन' नाम की यह ख़ूबसूरत किताब राजकमल प्रकाशन से प्रकाशित हुई है, और पुस्तक पर कमलेश्वर और गुलज़ार की भूमिका इस बात का सबूत हैं कि आपने जो किताब उठाई है, वो एक अच्छे और सच्चे नौजवान शायर का साहिबे-दीवान है.

पुस्तक : आमीन
ग़ज़लकार : आलोक श्रीवास्तव
प्रकाशक : राजकमल प्रकाशन, 1-B, नेताजी सुभाष मार्ग, दरियागंज, नई दिल्ली. +91

Friday 21 December, 2007

कलम का आयोजन -कुछ अनकही का लोकार्पण







परिवेश और स्थितियों की प्रमाणिकता ही किसी को कालजयी बनाते हैं, किसी कहानी या उपन्यास का कोई चरित्र जब अपनी सीमाओं का अतिक्रमण कर नए आयाम स्थापित करता है, अपने संघर्षों से नवीन स्थितियों को पैदा करता वही चरित्र युगों तक पाठक के जनमानस को उद्वेलित करता है,ये शब्द वरिष्ठ लेखक रामशरण जोशी ने कहे , वे पिंक सिटी प्रेस क्लब के सभागार में वरिष्ठ लेखिका मृदुला बिहारी के नवीनतम उपन्यास कुछ अनकही का विमोचन कर रहे थे,इन्होने मुख्य अतिथि के रुप में बोलते हुए कहा कि यह एक महा उपन्यास है ,इसमें स्त्री संघर्ष भी है ,परम्परा भी है और संस्कार भी , मृदुला जी ने बहुत सहज,सरल और सुबोध तरीके से क्राफ्ट , डिक्शन आदि की जटिलताओं से बचते हुए बिना किसी आडम्बर के अनकहे को अभिव्यक्त किया है,तीन पीढीयों का संघर्ष इसमें है पर रमा ताकत के साथ अपनी सीमाओं का अतिक्रमण करती है, इस उपन्यास की सबसे बड़ी ताकत है बिना किसी विशेष प्रयास के स्त्री विमर्श यानी सहज भाव से स्त्री अस्मिता की बात करता है .



कार्यक्रम की शुरुआत में कलम की और से डॉ दुष्यंत ने स्वागत किया ,मुख्य वक्ता के रुप में वरिष्ठ साहित्यकार नन्द भारद्वाज ने कहा कि यह उपन्यास स्त्री अस्मिता और चेतना के लेखन मी एक कड़ी है, मृदुला बिहारी लंबे कालखंड में संवेदनाओं का विलक्षण संसार बुनती हैं,वे स्त्री अस्मिता की मीरा से शुरू हुयी परम्परा में है, विमोचन के बाद कार्यक्रम के विशिष्ठ अतिथि आलोचक डॉ दुर्गाप्रसाद अग्रवाल ने कहा कि यह महाकाव्यात्मक उपन्यास है जो अद्भुत भाषा के साथ जीवंत प्रस्तुति है, बड़ा है इतने विस्तार के बिना कथ्य के साथ न्याय संभव नहीं था, रमा का संघर्ष आधुनिका का संघर्ष है, वह कहीं आत्मदया की पात्र नहीं बंटी,आधुनिक स्त्री प्रेम और बीच के द्वंद्व संतुलन में उलझी है , दो विकल्पों के बीच संघर्ष सतत जारी है,
उपन्यास के बारे में नयी परम्परा की शुरुआत करते हुए लेखिका की पुत्री अनुराधा बिहारी ने कहा कि यह उपन्यास उनकी ९ साल की साधना का परिणाम है ,इसके लेखन के दिनों में उनका समर्पण हमने बहुत शिद्दत से महसूस किया है ,वे जीवन स्थितियों का कल्पना और अनुभव के मिश्रण से जीवंत चित्रण करती हैं,जैसे हमारे परिवेश को हमसे जानकर उन्होंने हमसे बेहतर तरीके से अनुभव करते हुए अभिव्यक्त किया है .लेखिका मृदुला बिहारी ने आत्मकथ्य के रूप में कहा कि परिवेश ने कथा के बीज सूत्र दिए पर बीज से कथा स्वयं बनाई ,वास्तविकता के साथ कलपना का समानांतर संसार रचा, अब ये रचना पाठकों के सम्मुख है ,वही उसके श्रेष्ठ आलोचक हो सकते हैं.कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए राजस्थान के पूर्व मुख्य सचिव मीठा लाल मेहता ने कहा कि इस उपन्यास में आद्योपांत पठनीयता कायम है ,सतत उत्सुकता पाठक को बंधे रखती है,यही इस उपन्यास की सार्थकता है,कार्यक्रम का सफल संचालन कवि प्रेमचंद गांधी ने किया .